शनिवार, 16 मार्च 2024

वह हैं कहते

 मुझे इन पलकों से अनुमति मिली है

अब वह हैं कहते कि सहमति नहीं है


नयन के विवादों से हुआ था समझौता

नत होकर पलकों ने दिया तब न्यौता

अधर स्मिति रचि मति गही है

अब वह हैं कहते कि सहमति नहीं है


फागुन के पाहुन की हो रही अगुवाई

प्रीत की झंकार निखार रही अंजुराई

चाहत की चौखट चमकती वहीं है

अब वह हैं कहते कि सहमति नहीं है


रंगों ने बाजार में ग़दर है मचाई

पर रंगने में उसकी है ढिठाई


“बुरा न मानो” रास्ता ही सही है

अब वह हैं कहते कि सहमति नहीं है।


धीरेन्द्र सिंह

16.03.2024

19.23

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