शनिवार, 16 मार्च 2024

ना जाने

 ना जाने हम कैसे महकते रहे

चली राह वैसे हम चलते रहे

एक संगीत गूंजती थी मेरे साथ


अलमस्त गीतों को रचते रहे


मिली कुछ अदाएं जैसी फिजाएं

आँचल सी लहराती मोहक दिशाएं

जहां तक हवाएं बहकते रहे

अलमस्त गीतों को रचते रहे


प्रणय का विलय शब्द भाव किए

बहुत दूर हैं संग उनके ही जिए

तिरस्कार पाकर सुप्त जलते रहे

अलमस्त गीतों को रचते रहे


संग जी लिया उम्र को पी लिया

आसक्त था अनासक्त अब जिया

राह एकल ढलते उभरते रहे

अलमस्त गीतों को रचते रहे।


धीरेन्द्र सिंह

16.03.2024

2१.02

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