अब
मेरी उम्मीद के जलते दिए
बोलकर
मुझसे यह चल दिए
और
ना प्रतीक्षा अब हो पाएगी
जिंदगी
भ्रष्टाचार में समा जायेगी
हर
तरफ अवसर के झमेले हैं
हाँथ
कंधे पर अजीब यह रेले हैं
घात
और प्रतिघात बात बनाएगी
उम्मीद
की लौ जल ना पाएगी
कर्म
यदि प्रधान है तो विवश क्यों
भाग्य
यदि विधान है तो तमस क्यों
टोलियाँ
नयी बोलियां सत्य को झुटलायेंगी
न्याय
धर्म परे कर बिगुल नया बजायेंगी
उम्मीद
के दिए को यह जरुरी है
सत्य
रहे मंद ऐसी क्या मज़बूरी है
बातियों
को कर ऊँची लौ को बढ़ाएगी
यह
विचार कर हुंकार भीत को ढहाएगी
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
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