गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

शब्द जब भावनाओं में ढलता है

 
शब्द जब भावनाओं में ढलता है
ख़्वाहिशों संग मन पिघलता है
एक मिलन की ओर बढ़ता प्रवाह
ज़िंदगी तो फकत समरसता है

जी भी लेने के हैं जुगत कई
पसीने से ना फूल खिलता है
कर्म और भाग्य की लुकाछिपी है
ज़िंदगी भी लिए कई आतुरता है

शब्द ही तो समय को रंगता है
शब्द में एकरसता तो विषमता है
शब्द के निनाद से गुंजित आसमान
शब्द ही तो एहसासों में खनकता है

हमने जो पाया नहीं कि भाया है
वक़्त भी ज़िंदगी संग ढलता है
सतत संघर्षरत जीवन लय संग 
शब्द संग जीवन सतत सँवरता है।   


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर सरल रचना धीरेंद्र जी । आखिरी पैरे का फ़ोंट छोटा हो गया है उसे थोडा बडा करें । शुभकामनाएं

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  2. ्बेहद उम्दा और गहन भावाव्यक्ति।

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  3. शब्दों के माध्यम से जीवन को परिभाषित करती सुंदर रचना...

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  4. शब्दों का जीवन से गठबंधन अद्भुत है.

    इस रचना के लिये बधाई.

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