फिर
हवाओं ने छुआ नवपल्लवित पंखुड़ियाँ
नव
सुगंध ने सुरभि शृंखला संव्यवहार किया
अभिनव
रंग में हुआ प्रतिबिम्बित प्यार
फिर
चाहत ने राहों से प्रीतजनक तकरार किया
लगन
लगी की हो रही चारों ओर बतकही
प्रीत
की रीत यह बेढंगी सबने तो स्वीकार किया
अलख
जगी तो लगी समाधि समर्पण की
दिल
ने जुड़कर पल-पल को जीवन का त्योहार किया
दुनिया
की अनदेखी करने का न मिला संस्कार
दूरी
रख कर चाहत ने जीने का इकरार किया
वैसे
भी सब मिलता नहीं जो चाहे दिल
दर्द-ए-दिल
की चिंगारी में हवन बारम्बार हुआ
आखिर
वक़्त संवारा आया हट गया साया
दुनिया
ने इस श्रुति का आखिर पुकार किया
सच्चाई
को जीत अपूर्व मिलती है ज़रूर
मिलती
है मंज़िल अगर कोई ना गुमराह किया।
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
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