शब्द जब भावनाओं में ढलता है
ख़्वाहिशों संग मन पिघलता है
एक मिलन की ओर बढ़ता प्रवाह
ज़िंदगी तो फकत समरसता है
जी भी लेने के हैं जुगत कई
पसीने से ना फूल खिलता है
कर्म और भाग्य की लुकाछिपी है
ज़िंदगी भी लिए कई आतुरता है
शब्द ही तो समय को रंगता है
शब्द में एकरसता तो विषमता है
शब्द के निनाद से गुंजित आसमान
शब्द ही तो एहसासों में खनकता है
हमने जो पाया नहीं कि भाया है
वक़्त भी ज़िंदगी संग ढलता है
सतत संघर्षरत जीवन लय संग
शब्द संग जीवन सतत सँवरता है।
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
सुंदर सरल रचना धीरेंद्र जी । आखिरी पैरे का फ़ोंट छोटा हो गया है उसे थोडा बडा करें । शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भाव लिए अच्छी रचना
जवाब देंहटाएं्बेहद उम्दा और गहन भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंशब्दों के माध्यम से जीवन को परिभाषित करती सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंशब्दों का जीवन से गठबंधन अद्भुत है.
जवाब देंहटाएंइस रचना के लिये बधाई.