गुरुवार, 27 जनवरी 2011

आपका चेहरा

आपका चेहरा ना देखा कुछ ना देखा
बोल की मिश्री ना तो कैसी मिठास
चांद चलता चांदनी ले चुलबुली
लहरें तट पर दौड़ती कर अट्ठहास

तृप्ति का अनुभव जो मरूस्थल करे
बदली भर बूंदों का पा अहसास
आपका रूप अप्रतिम बस गया
अब ना जीवन से चाहिए खास

सुरभित, सुगम, सुनहरा सौंदर्य है
लगे निज जलप्रपात जैसी प्यास
शबनमी अहसास में पुलकित पंखुड़ियां
सृष्टि को समेट लिया हो मधुमास

आपका चेहरा या मेरी दृष्टि है
खूबसूरती में कैसी यह तलाश
एक जीवन जी ल्न् की ललक
दूरियां कम कर हो सकें पास.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

6 टिप्‍पणियां:

  1. ्रूप रस के सौन्दर्य मे सुन्दर शब्दों का प्रयोग। दिल को छू गयी ये प्रेमाभिव्यक्ति। शुभकामनायें।

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  2. वाह! सच मे चेहरा उतार दिया…………सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  3. आदरणीय धीरेन्द्र सिंह जी
    सादर सस्नेहाभिवदन !

    आपके ब्लॉग की बहुत सारी रचनाएं पढ़ीं … आनन्द आ गया । सुंदर भाव और शिल्प की छटा मुग्ध कर देती है … वाह वाऽऽह !
    आप अलंकारों का भरपूर प्रयोग करते हैं विशेषतः अनुप्रास का … !

    गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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