बुधवार, 26 जनवरी 2011

चाहतों की चुगलियां

चाहतों की चुगलियों की चाशनी
तुम भी तो चखती होगी रागिनी

एक मिठास पुष्प से भ्रमर उड़ाए
सूर्य रश्मियां निरखें बन कुनकुनी

ज़ुल्फ उड़ाने की दोषी अदा कहां
दे गई निज़ संदेशा हवा सनसनी

एक चिड़िया अलगनी पर चहचहाए
प्रीत प्रदर्शित करे हो बनी-ठनी

चाहतों की चुगलियों के चंगुल में
कल्पना, यथार्थ में रहे अनबनी.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

2 टिप्‍पणियां:

  1. शीर्षक ही बहुत कुछ कह गया…………सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  2. चाहतों की चुगलियों की चाशनी
    तुम भी तो चखती होगी रागनी ....

    इन चुगलियों की चाशनी का तो अलग ही स्वाद है ....

    बहुत खूब ....!!

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