बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

पल्लवन

 प्रणय का पल्लवन भी जारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है


हृदय के मूल बसा रहता प्यार

अपना परिवेश भी देता खुमार

सम्मिश्रण यह धार दुधारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है


क्यों खींचूं मन चाह है सींचता

क्यों रुकूँ परिवेश राह है खींचता

स्पंदनों में महकती धुन प्यारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है


उम्र की पंखुड़ियों से है सजा प्यार

अनुभव की मंजुरियां हैं खिली बहार

समझ में बूझ करती चित्रकारी है

दबोचती अक्सर दुनियादारी है।


धीरेन्द्र सिंह

06.02.2025

10.15




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