वर्तमान के व्यक्तित्व
अभिमन्यु हैं
निरंतर तोड़ते
व्यूह रचनाएं,
आक्रामक परिवेश है
परिचित अधिक
अपरिचित कम
महाभारत का परिवेश
यह ना वहम,
कितने अपने छूटे
साथ कुछ टूटे
फिर भी ना छूंछे
एक युद्ध है
मानव कहां बुद्ध है,
सपने-सपने चाह
अपने-अपने, आह!
अस्त्र-शस्त्र भिन्न
संघर्ष जारी है
जीत की तैयारी है।
धीरेन्द्र सिंह
25.02.2025
22.32
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