नेह-नेह दृष्टि है
देह-देह सृष्टि है
मन की बात हो
भाव का नात हो
चाहत की वृष्टि है
देह-देह सृष्टि है
बातें सभी हो जाएं
देह चुप हो सुगबुगाए
देह क्या क्लिष्ट है
देह-देह सृष्टि है
रूप की बस चर्चा
शेष देह बस चरखा
नख-शिख समिष्ट है
देह-देह सृष्टि है
देह भी देवत्व है
भाव तो नेपथ्य है
देह गाथा तुष्टि है
देह-देह सृष्टि है।
धीरेन्द्र सिंह
24.02.2025
18.59
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