सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

देह

 नेह-नेह दृष्टि है

देह-देह सृष्टि है


मन की बात हो

भाव का नात हो

चाहत की वृष्टि है

देह-देह सृष्टि है


बातें सभी हो जाएं

देह चुप हो सुगबुगाए

देह क्या क्लिष्ट है

देह-देह सृष्टि है


रूप की बस चर्चा

शेष देह बस चरखा

नख-शिख समिष्ट है

देह-देह सृष्टि है


देह भी देवत्व है

भाव तो नेपथ्य है

देह गाथा तुष्टि है

देह-देह सृष्टि है।


धीरेन्द्र सिंह

24.02.2025

18.59




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