गुरुवार, 2 जनवरी 2025

अपने

 शायद कोई सपने ना होते

अगर कोई अपने ना होते


चाह अंकुरण अथाह अंतहीन

अपने ना हों तो रहे शब्दहीन

भाव डुबुक लगाते तब गोते

अगर कोई अपने ना होते


कौन अपना कुछ जग जाने

कौन अपना झुक मन समाने

दिल खामोशी से देता न न्यौते

अगर कोई अपने ना होते


अपनों की दुनिया रहस्यमय

सपनों की बगिया भावमय

हृदय निस संभावना क्यों बोते

अगर कोई अपने ना होते।


धीरेन्द्र सिंह

02.01.2025

19.05

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें