एक युवती घुटनों बल चढ़ रही थी सीढियां
वह शक्ति नहीं था स्वभाव दे गई पीढियां
कई वयस्क हांफ रहे थे चढ़ते हुए लगातार
सदियों पुरानी, भारतीय पुरातत्व की झंकार
कितनों की मन्नत पूरी हुई जानती सीढियां
वह शक्ति नहीं था स्वभाव दे गई पीढियां
एक युवक लिए थैला दे रहा था उसका साथ
महिला ही होती हैं पकड़े जीवन के विश्वास
पथरीली थी कुछ अनगढ़ सीढ़ी समेटे कहानियां
वह शक्ति नहीं था स्वभाव दे गई पीढियां
आस्था और विश्वास का ही जग में उल्लास
अदृश्य ऊर्जा कोई कहीं पाए उसकी है आस
परालौकिक ऊर्जाओं में रुचि लगता बढ़िया
वह शक्ति नहीं था स्वभाव दे गईं पीढियां।
धीरेन्द्र सिंह
06.12.2024
19.38
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