सोमवार, 4 नवंबर 2024

नारी और पुरुषार्थ

 अग्नि का स्त्रीलिंग होना

योजनाबद्ध शब्दावली नहीं

और

नदी का स्त्रीलिंग होना

एक व्याख्यावाली नहीं

दोनों सृष्टि संवाहक हैं

एक शीतल दूजा पावक है;


आप में भी

पाता हूँ जल अग्नि का

संतुलन,

नीर का है अथाह संयोजन

अग्नि का सुरभित प्रयोजन,

यह मात्र कथन नहीं है

सदियों का भाव जतन है;


पुरुष आदिकाल से

निर्भर है नारी पर

जल और अग्नि के लिए

जिससे पूर्ण कर अपनी भावना,

करता है पुरुषत्व का प्रदर्शन 

पुरुष!


नारी को जीया जा सकता है

नहीं कर सकता पुरुष

प्यार नारी को;


इन तथ्यों को अनदेखा कर

कहता है पुरुष कि, वह

करता है प्यार नारी से,

सदियों से यही झूठ

लिखा जा रहा

बोला जा रहा

बोया जा रहा,


नारी मौन 

अग्नि से जीवन

और जल से शीतलता

करती जा रही प्रदान,

नारी ही है धूरी प्यार की

नारी ही है प्यार जननी

पुरुष अपने पुरुषार्थ में

गलत रचे जा रहा,


पुरुषार्थ पर मुग्धित पुरुष! 

कभी देखो, कभी समझो

नारी को,

एक प्रचंड जल प्रवाह मिलेगा

और

मिलेगा धधकता दावानल,

जिसे निरख बंध जाएगी घिग्गी

छोड़ भागोगे उन्मादी प्यार की बग्घी।


धीरेन्द्र सिंह

04.11.2024

17.58




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