नेतृत्व - नेतृत्व
विश्वमयी मानव तत्व
पर छाते अंधियारे
विश्व किसको डांटे
कुनबा-कुनबा निज अस्तित्व,
नेतृत्व-नेतृत्व
युद्ध कहीं चल रहा
कहीं आस्था परिवर्तन
लगाम लगा न पाए कोई
निरंतर हो परिवर्तन
कैसे-कैसे खुले-बंद हैं कृतित्व,
नेतृत्व-नेतृत्व
कोख कहीं सौम्य सरल
कोख कहीं अति सक्रिय
जात-धर्म की चर्चा है
शूद्र, वैश्य, पंडित, क्षत्रीय
कहा किसका कैसे गिनें घनत्व,
नेतृत्व-नेतृत्व
एक विवेकी असमर्थ हो जाता
विपक्ष में जो हो अविवेकी
कर्म से कोई भाग्य रचता
कोई रचता आक्रामकता खेती
मानवता करे गुहार स्थूल न हो द्रव्य,
नेतृत्व-नेतृत्व
वसुधैव कुटुम्बकम विश्व भाल
सत्य है नहीं वहम, जीवन पाल
भारतीय संस्कृति अति विशाल
हमेशा चाहती विश्व सुख ताल
मानवता चाहती विनम्रता सत्व,
नेतृत्व-नेतृत्व।
धीरेन्द्र सिंह
16.11.2024
12.51
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