शनिवार, 31 अगस्त 2024

प्रेम

 चलो दिल बस्तियों में हम समा जाएं

प्रेम परिभाषित करें और गुनगुनाएं


तृषित जो कामना ना होती मिलते क्यों

नियॉन रोशनी में दिए सा जलते क्यों

लौ हमारी समझ तुम्हारी लपक जाए

प्रेम परिभाषित करें और गुनगुनाएं


एक नियमावली के तहत हृदय काम करे

प्यार की रंगीनियां हों देह बात पार्श्व धरे

उन्मुक्त बोलने पर पाबंदियाँ न लगाओ

प्रेम परिभाषित करें और गुनगुनाएं


“ओ हेलो” बोलना भी तो बदतमीजी है

कड़वे शब्द बोलो क्या यही आशिकी है

प्रणय कह रहा है प्रतिक्षण न बुद्बुदाएँ

प्रेम परिभाषित करें और गुनगुनाएं।


धीरेन्द्र सिंह

31.08.2024

13.43



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