शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

पूछे दिल

आपकी अदा सदा रहती बुदबुदा

अक्सर पूछे दिल फिर से बता


एक संगीत धुन सी लगें गुंजित

ध्यान हो धन्य अदा में समाहित

जैसे भित्ती चढ़ती बलखाती लता

अक्सर पूछे दिल फिर से बता


झूम कर जो चलें प्रकृति झूम जाए

आपकी दिव्यता से भव्यता मुस्काए

मुग्ध तंद्रा में दिल अंतरा दे सजा

अक्सर पूछे दिल फिर से बता


यह पूछना प्रश्न नहीं ललक संवाद

दिल में क्यों होता अदाओं का निनाद

क्या प्रणय अव्यक्त की यही सजा

अक्सर पूछे दिल फिर से बता।


धीरेन्द्र सिंह

20.07.2024

09.30




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