सोमवार, 29 जुलाई 2024

हताश

 खिड़कियां बंद कर रोक रहे हैं प्रकाश

कमरा कैसे रोशन सोचे न वह हताश


प्रतिबंधन आत्मिक होता, नहीं भौतिक

विरोध वहीं जहां संबंध निज आत्मिक

ब्लॉक करने पर भी झलकता उजास

कमरा कैसे रोशन सोचे न वह हताश


हृदय फूल खिलते जैसे खिलें जंगल

खिलना न रुक पाए हृदय करे दंगल

विरोध, प्रतिरोध ढक न पाए आकाश

कमरा कैसे रोशन सोचे न वह हताश


याद न आए जो समझिए गए हैं भूल

भुलाने का प्रयास जमाए गहरा मूल

यह है नकारात्मक वेदना प्यारा सायास

कमरा कैसे रोशन सोचे न वह हताश।


धीरेन्द्र सिंह

30.07.2024

09.07



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