खिड़कियां बंद कर रोक रहे हैं प्रकाश
कमरा कैसे रोशन सोचे न वह हताश
प्रतिबंधन आत्मिक होता, नहीं भौतिक
विरोध वहीं जहां संबंध निज आत्मिक
ब्लॉक करने पर भी झलकता उजास
कमरा कैसे रोशन सोचे न वह हताश
हृदय फूल खिलते जैसे खिलें जंगल
खिलना न रुक पाए हृदय करे दंगल
विरोध, प्रतिरोध ढक न पाए आकाश
कमरा कैसे रोशन सोचे न वह हताश
याद न आए जो समझिए गए हैं भूल
भुलाने का प्रयास जमाए गहरा मूल
यह है नकारात्मक वेदना प्यारा सायास
कमरा कैसे रोशन सोचे न वह हताश।
धीरेन्द्र सिंह
30.07.2024
09.07
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