शनिवार, 27 जुलाई 2024

वह

 वह बिन लाईक, टिप्पणी मुझको पढ़ती है

बोल या अबोल सोच खुद में सिहरती है

मेरी रचना बूझ जाती बिनबोली सब बात

ऐसे नित मेरी रचनाओं में वह संवरती है


स्वाभिमान अभिमान बनाते सब संगी साथी

आसमान अपना समझ भ्रमित विचरती है

संवेदनाएं उसकी मेरी आहट की देती सूचना

हो जाती असहाय जब अपनों में बिहँसती है


कल्पनाएं भावपूर्ण हो तो बिखेरती बिजलियाँ

व्योम विद्युत सी आजकल मुझपर गिरती है

जिंदगी कब सीधी राह मिली किसी को

जिंदगी की है आदत प्रायः वह मचलती है।


धीरेन्द्र सिंह

27.07.2024

19.40

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