सौंदर्य का सृष्टि पर उपकार है
आप भी तो प्रकृति उपहार हैं
पुष्प रंग और सुगंध दंग कर रहे
पुलकित हृदय नए प्रबंध कर रहे
टहनी लचक कमनीयता झंकार है
आप भी तो प्रकृति उपहार हैं
बारिश बूंदे फूटे झरने मस्त फुहार
शीतल जल चरणों का करे दुलार
आप नयन से बरसें जैसे गुहार हैं
आप भी तो प्रकृति उपहार हैं
मन आपका वादियां आकर्षित जन
तन आपका शर्तिया व्योम का रहन
एक प्रतिरूप आप, कामना द्वार है
आप भी तो प्रकृति उपहार हैं।
धीरेन्द्र सिंह
16.07.2024
09.29
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