शुक्रवार, 7 जून 2024

दौड़ते जा रहा

 दाल उबल रही भोजन की आस है

पेट का नाम ले संभावना हताश है

यह एक क्षद्म है या स्व छलावा

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है


रूठ गयी कविता बोली भाव नहीं

प्यार पर लिखते हो प्यार है कहीं

मोहब्बत में तोहमत चलन खास है

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है


कविता बोली सबकुछ है यहां संभव

जीत के निनाद में सत्य है पराभव

दौड़ते हुए पर भी नियंत्रण खास है

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है


समय, काल, भाल देख कविता तौले

सर्जन का मूल मंत्र वह हौले से बोले

प्रत्येक रचना में मुखर कोई फांस है

दौड़ते जा रहा कहे जिंदा लाश है।


धीरेन्द्र सिंह

07.06.2024

22.51




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