बुधवार, 12 जून 2024

जिद्दी

 सुबह ढल रही है उदय शाम हो

कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो


प्रेम की आपकी कई परिभाषाएं

एक समझें कि दूजी उभर आएं

नए प्रेम की आवधिक गान हो

कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो


एक के साथ दूजा करे आकर्षित

लपक कर बढ़े कर पहला शमित

दूजा भाया नहीं ना इत्मिनान हो

कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो


साहित्य छूटा क्या है एम ए खूंटा

हुआ जब अपमान थे अपने अजूबा

बिखर कर हो भंजित लिए गुमान हो

कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो।


धीरेन्द्र सिंह

12.03.2024

20.55




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