शब्द आपके छू जाते हैं
मन में होती सिहरन
पंखुड़ी पर ओस बूंद
कितनी कोमल ठहरन
ऐसे उगता है दिन मेरा
शब्द आपके संग बनठन
एक चेतना होती प्रवाहित
संग भाव उमंग गहन
कोमलतम अनुभूति आपकी
जैसे हो सुगंधित उबटन
खिल जाता तब अंग-अंग
मन हर्षित हो टनाटन
निखरे भाव लपेटे शब्द
रचि भावों में चितवन
मुझको देखे दृष्टि सृष्टि
कब होगा निर्मित मधुबन।
धीरेन्द्र सिंह
03.04.2024
07.25
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