शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

नरम हो गए

 पचीसों भरम के करम हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए


मन की आवारगी की कई कुर्सियां

अनगढ़ भावों की बेलगाम मर्जियाँ 

ना जाने किसके वो धरम हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए


एक नए में नएपन की अकुलाहट

भव्यता चाह की हरदम फुसफुसाहट

न जाने कब हृदयभाव, बरम हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए


सब जगह से किए ब्लॉक, वह तपाक

भोलापन न जाने, ब्लॉक टूटता धमाक

दूजी आईडी से मार्ग बेधरम हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए


ऑनलाइन में होती कहां लुकी-छिपी

मूंदकर आंखें खरगोश सी पाएं खुशी

उनके किस्से भी आखिर सहन हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए।



धीरेन्द्र सिंह

19.04.2024

16.21

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