शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

रसिया हूँ

 

जीवन के हर भाव का मटिया हूँ

हाँ मैं रसिया हूँ

 

प्रखर चेतना जब भी बलखाती है

मानव वेदना विस्मित सी अकुलाती है

उन पलों का प्रेम सृजित बखिया हूँ

हाँ मैं रसिया हूँ

 

चिन्हित राहों पर गतिमान असंख्य कदम

इन राहों पर सक्रिय संशय बहुत वहम

यथार्थ रचित एक ठाँव का मचिया हूँ

हाँ मैं रसिया हूँ

 


रस है तो जीवन में चहुंओर आनंद

आत्मसृजित रस तो है स्वयं प्रबंध

अंतर्यात्रा के पर्व निमित्त गुझिया हूँ

हाँ मैं रसिया हूँ।

 

धीरेन्द्र सिंह

13.04.2024

05.18

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