जीवन के हर भाव का मटिया हूँ
हाँ मैं रसिया हूँ
प्रखर चेतना जब भी बलखाती है
मानव वेदना विस्मित सी अकुलाती
है
उन पलों का प्रेम सृजित बखिया
हूँ
हाँ मैं रसिया हूँ
चिन्हित राहों पर गतिमान असंख्य
कदम
इन राहों पर सक्रिय संशय बहुत
वहम
यथार्थ रचित एक ठाँव का मचिया
हूँ
हाँ मैं रसिया हूँ
रस है तो जीवन में चहुंओर आनंद
आत्मसृजित रस तो है स्वयं प्रबंध
अंतर्यात्रा के पर्व निमित्त
गुझिया हूँ
हाँ मैं रसिया हूँ।
धीरेन्द्र सिंह
13.04.2024
05.18
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