अचरज है अरज पर क्यों न ध्यान
दीजिए
बिना जाने-बुझे क्यों
मनमाना मान लीजिए
सौंदर्य की देहरी पर होती हैं
रश्मियां
एक चाह ही बेबस चले ना मर्जियाँ
अनुत्तरित है प्रश्न थोड़ा सा
ध्यान दीजिए
बिना जाने-बूझे क्यों
मनमाना मान लीजिए
लतिकाओं से पूछिए आरोहण की प्रक्रिया
सहारा न हो तो जीवन की मंथर हो
क्रिया
एक आंच को न क्यों दिल से बांट
लीजिए
बिना जाने-बूझे क्यों
मनमाना मान लीजिए
शब्दों में भावनाओं की हैं टिमटिमाती
दीपिकाएं
आपके सौंदर्य में बहकती हुई लौ
गुनगुनाएं
इन अभिव्यक्तियों में आप ही हैं
जान लीजिए
बिना जाने-बूझे क्यों
मनमाना मान लीजिए।
धीरेन्द्र सिंह
13.04.2024
18.17
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