बुधवार, 27 मार्च 2024

देह

 देह कहां अस्तित्ब है मनवा

आत्म प्रीति ही जग रीति

रूप की आराधाना है भ्रम

आत्मचेतना ही नव नीति


देह प्रदर्शन देता मोबाइल

दैहिक कामना ढलम ढलाई

रूप कहां की प्रेम रीति

आत्मचेतना ही नव निति


ना सोचो देह जशन है

बिना देह सजनी-सजन हैं

संवेदनाओं में गहन प्रतीति

आत्मचेतना ही नव प्रतीति


वर्षों तक हम रहे अबोले

भाव हृदय कहां बिन बोले

तत्व चेतना की ही स्थिति

आत्मचेतना ही नव प्रतीति।


धीरेन्द्र सिंह

27.03.2024

16.19

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