देह कहां अस्तित्ब है मनवा
आत्म प्रीति ही जग रीति
रूप की आराधाना है भ्रम
आत्मचेतना ही नव नीति
देह प्रदर्शन देता मोबाइल
दैहिक कामना ढलम ढलाई
रूप कहां की प्रेम रीति
आत्मचेतना ही नव निति
ना सोचो देह जशन है
बिना देह सजनी-सजन हैं
संवेदनाओं में गहन प्रतीति
आत्मचेतना ही नव प्रतीति
वर्षों तक हम रहे अबोले
भाव हृदय कहां बिन बोले
तत्व चेतना की ही स्थिति
आत्मचेतना ही नव प्रतीति।
धीरेन्द्र सिंह
27.03.2024
16.19
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