सघन हो गगन हो मनन हो
सहन हो समझ हो नमन हो
सदियों से प्रकृति में है बसेरा
देहरी के भीतर की हैं सवेरा
जीवन डगर पर भी चमन हो
सहन हो समझ हो नमन हो
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है नया
भारतीय संस्कृति में यह ना नया
नारी पर लेखन का क्यों चलन हो
सहज हो समझ हो नमन हो
अथक श्रमिक है परिवार की धूरी
आदि शक्ति वह ना कोई मजबूरी
बुद्धिमान, कीर्तिमान की अगन हो
सहज हो समझ हो नमन हो।
धीरेन्द्र सिंह
21.03.2024
20.05
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