सोमवार, 29 जनवरी 2024

हो जाऊंगा अशुद्ध

 मन को ना छुओ नहीं मैं बुद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध


प्रीत प्रणय है सदियों की बीमारी

रीत नीति है वादियों की ऋतु मारी

मुझसे जुड़कर प्रवाह करो न अवरुद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध


आत्म मंथन का हूँ मैं एक पुजारी

पारदर्शी सत्यता इच्छा पूर्ण सारी

सरल शांत मन ना कहीं अवरुद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध


उसे चिढ़ाता था कह रानी दिखलाओ

वह कहती थी कर्मठता तो दिखलाओ

वह थी रानी राजा सा मैं निबद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा में अशुद्ध


व्यक्तित्व मेरा हवन सुगंधित ज्वाला

कृतित्व को उसने टोह-टोह रच डाला

उससा कोई कहीं नहीं थी बड़ी प्रबुद्ध

छुओगे तो हो जाऊंगा मैं अशुद्ध।


धीरेन्द्र सिंह

29.01.2024


20.43


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