देखी हो कभी
प्रवाहित सरणी
हृदय की,
बैठी हो कभी
तीरे
निःशब्द, निष्काम
हृदय धाम
नीरे-नीरे,
देखी हो चेहरा
तट पर ठहरे जल में
धीरे-धीरे,
एक गंगा है
हृदय प्रवाहित
आओ
हाँथ में दिया लिए
प्रवाहित कर दें
भांवों को संयुक्त,
मुड़ जाएं अपनी राह
जहां चाह।
धीरेन्द्र सिंह
18.10.2023
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें