मंगलवार, 22 अगस्त 2023

एक तुम हो

 

सुहाने होते मौसम में

भाव पुष्प खिल जाएं

युक्ति, चाह हो ऐसी

वाह! कहीं मिल जाएं

 

सदियों से यह कहते

प्रणय भाव झुक जाए

एक तुम हो ऐसे

कभी आए ? बिन बुलाए

 

तृष्णा क्यों रहे तृषित

नदियां बहती क्यों जाए

अंजुरी भर की बात

क्यों अधर बूंद तरसाए

 

इतना कहने का अधिकार

चुप भी ना रहा जाए

सहने को कई और

जीवन भी यही दर्शाए।

 

धीरेन्द्र सिंह

22.08.2023

12.41

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