शनिवार, 1 अप्रैल 2023

उठे बवंडर


मिश्री घुली नमी हवा की

संदली हवा उल्लास है

कौन दिशा से आया झोंका

महका कोई कयास है


पत्ते सा दिल झूम उठा

मंजरियों में विश्वास है

आकर्षण से बंध कर आए

जिसको जिसकी तलाश है


बंधन जाने हर पल चंदन 

अभिनंदन निहित उजास है

दूर से आए सागर तीरे  

तट पर बिखरी प्यास है


वेग हवा का हूँ हूँ बोले

उठे बवंडर आस है

दूर देर तक टिका वही

जिसका बवंडर खास है।


धीरेन्द्र सिंह

28.03.2023

22.33

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