भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
देह दलन
कैसा चलन
व्यक्ति श्रेष्ठ
आवश्यकता ज्येष्ठ
विवशता लगन
प्रदर्शन परिपुष्ट
प्रज्ञा सुप्त
वर्चस्वता सघन
शौर्य समाप्त
चाटुकारिता व्याप्त
अवसरवादिता मनन
देह परिपूर्णता
स्नेह धूर्तता
प्यार गबन
कैसा चलन।
धीरेन्द्र सिंह
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