तिरस्कृत प्यार
जानबूझकर हो
या हो अनजाने में,
यादें उठती
भाप सरीखी उड़ती
घर हो या मयखाने में;
सुंदर हो बाहुपाश
हो समर्पित विश्वास
यादें मिले तराने में,
कौन बहेलिया
बहलाए सांस
बदले निजी जमाने में;
अनुगामी यादें
टूटे ना वह नाते
त्यजन गरमाने में,
वशीकरण वशीभूत
भावनाओं का द्युत
जीवन को भरमाने में;
दूरी कैसी
लिप्सा मजबूरी जैसी
चाहतें हर जाने में,
जानेवाले जाएं कहां
यादों से रहे नहा
युग्मित गुसलखाने में।
धीरेन्द्र सिंह
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