गुरुवार, 1 जुलाई 2021

तुम

 तुम नयनों का प्रच्छा लन हो

तुम अधरों का संचालन हो

हृदय तरंगित रहे उमंगित

ऐसे सुरभित गति चालन हो


संवाद तुम्हीं उन्माद तुम्हीं

मनोभावों की प्रतिपालन हो

जिज्ञासा तुम्हीं प्रत्याशा तुम्हीं

रचनाओं की नित पालन हो


कैसे कह देती वह चाह नहीं

हर आह की तुम ही लालन हो 

हर रंग तुम्हीं कोमल ढंग तुम्हीं

नव रतिबंध लिए मेरी मालन हो।


धीरेन्द्र सिंह

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें