शुक्रवार, 26 मई 2017

आज निशा निमंत्रण है
हृदय भी किए प्रण है
चांदनीं में डूब नहाए मन
स्पंदनों से गूंजे हर कण-कण है।

                       -2-
आज निशा निमंत्रण है
हृदय का मुक्त भ्रमण है
चांदनीं बिखरी सकुचाई सी
चंदा कहे क्या रमण है।

                           -3-
आज निशा निमंत्रण है
हृदय करे कुछ संग्रहण है
चांदनीं बिखरी जुल्फों सी
मुग्धित हर पल - क्षण है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें