हद है कि इश्क़ अब दीवान हो गया
इंसान भी गुम होकर महान हो गया
इश्क़ तकिया कभी बिछौना सा बनाएं
आरामगाह तो कभी अभियान हो गया
उनके गेसुओं में उलझने का न मौका
तत्काल टिकट सा इश्क़ सामान हो गया
किसको पड़ी निगाहों में उतरने की फिक्र आज
अब यूं लगे कि इश्क़ बेजुबान हो गया
सिर्फ बाहों के घेरे के अधिकांश चितेरे भरे
झटपट फटाफट लिपट का कद्रदान हो गया
धडकनों, तड़पनों, उलझनों का मज़ा भूले
इश्क़ एहसास ना रहा बड़ा नादान हो गया।
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