अनहद
अद्भुत अकस्मात होता है
तुम
हो पास तो सबकुछ होता है
वलय
भावनाओं की मरीचिका बन
दहन
को शमित कर सघन बन
मन
के सीपी का, मोती सोता है
सानिध्य
में, सुगंध नयी बोता है
अल्प
नहीं, पूर्ण नहीं बल्कि अविराम
राधा
के कृष्ण जैसे सीता के राम
स्पंदित,
आनंदित आह्लादित सोता है
लगन
में मन मगन, ऐसे ही होता है
अनहद
अद्भुत अकस्मात होता है
तुम
हो पास तो सबकुछ होता है
व्योम
सा बाहुपाश और विश्वास लिए
चाँद,
सूरज, सितारों का उच्छ्वास लिए
धरा
को विस्मित कर राग पिरोता है
गुंजित
सरगम में फिर डुबोता है
पुष्प
या वृक्ष समझूँ या कहूँ वाटिका
बावरी
विह्वल हो या कठोर साधिका
नित
अनंत सृजन, अंत ना होता है
ऐसा
सानिध्य कभी जीवन ना खोता है
अनहद
अद्भुत अकस्मात होता है
तुम
हो पास तो सबकुछ होता है
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
बहुत सुंदर !! अंतर की गहन अनुभूतियों का अनोखा चित्रण !
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