गुरुवार, 3 नवंबर 2011

फिर वही खुमारी है


शब्दों के मुंह पर किलकारी है
ज़ुल्फ चाहत ने फिर सँवारी है
भाव भींगे से उनींदे से अलसाए
छा गयी फिर वही खुमारी है

कितने दिन दूर रहा हूर से
सदाएँ भी न मिली नूर से
ज़िंदगी की भी क्या दुश्वारी है
कभी प्यारी तो लगे खारी है

वक़्त के हाशिये का रंग अलग
बदल ना पाये चाहतों की छलक
पलक झपकते दिखे लाचारी है
कि लगे प्यारी यह दुनियादारी है

जुल्फ के साये सा आश्रय कहाँ
साँसों की सरगमों सा प्रश्रय कहाँ
मौन स्पर्शों में भी खुद्दारी है
चंदा-चकोर सी यह चित्रकारी है।






भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता 
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति , बधाई

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  2. गहन भावों की अभिव्यक्ति..


    संजय भास्कर
    आदत....मुस्कुराने की
    पर आपका स्वागत है
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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