गुरुवार, 24 मार्च 2011

बंधन

उड़ चलो संग, साथ मिल जाएगा
आसमान बदलियों सा झुकता नहीं
भावनाओं का प्रवाह है निरंतर
किसी अंतर पर यह रूकता नहीं

बंधनों के स्थायित्व की खुशी
हर्षित मन को बंधन पुरता नहीं
एक रिश्ता जन्म भर का मुकाम
जन्म भर पर यह जुड़ता नहीं

होगी कई आपत्तियॉ इस विचार पर
सोच व्यापकता लिए कुढ़ता नहीं
कितनी कोशिशें हो चुकीं नाकाम
मन सोचता पर कदम मुड़ता नहीं

बंधनों को तोड़ने का न हिमायती
बंधनों में रचनात्मकता है मूढ़ता नहीं
बंधनों से मन में जो सिसकारी उठे
झेलना कायरता है यह शूरता नहीं.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

6 टिप्‍पणियां:

  1. भावनाओं का प्रवाह हो निरंतर , फिर क्या ग़म ... उड़ चल पाखी मन

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छे काव्य के लिए अभिवादन स्वीकारें

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत से बंधन न चाहते हुए भी निभाने पड़ते हैं..सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
    पर कुछ बंधन स्थायित्व की ख़ुशी देते है,
    इक रिश्ता जन्म भर का मुकाम,
    सात जन्मों तक भी टूटता नहीं..

    जवाब देंहटाएं
  5. har vichar ek dam sach ka saakshi hai. sunder shabd chayan se prabhavshali rachna srijan. badhayi.

    जवाब देंहटाएं
  6. बंधनों को समझने और सुन्दरता के साथ निबाहने में ही जीवन की सार्थकता है ।

    जवाब देंहटाएं