गुरुवार, 10 मार्च 2011

रंगों का पर्व

 
ऱंगों का पर्व आया रंग गई हवाएं
मंद कभी तेज चल संदेसा लाएं
एक शोखी घुल कर फिज़ाओं में
पुलकित फुलवारी जैसी छा जाए

अबीर,गुलाल से शोभित हो गुलाब भाल
सुर्ख गाल देख चिहुंक रंग भी भरमाए
अधरों की रंगत छलक-छलक जाए तो
पिचकारी के रंग सब भींग के शरमाए

रंगों के पर्व पर मन हुआ अजीब है
जियरा की हूक बेचैनी दे तड़पाए
फाग की आग में कुंदनी कामनाएं
चोटी पर पहुंच दूर से किसे बुलाए

सत्य का यह विजय पर्व सबको लुभाए
होलिका दहन में राग-द्वेष सब जल जाए
आ गई रंग लेकर के फिर होली यह
ना जाने यह रंग कब किसको छल जाए,




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

7 टिप्‍पणियां:

  1. होलिका दहन में राग-द्वेष सब जल जाए...
    dua to hamesha yahi hai , per jalta hai vishwaas , varshon ka pyaar

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  2. होली के मनभावन रंगों जैसी सुन्दर रचना ..

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  3. होली के पर्व कि महत्ता बताती अच्छी रचना

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  4. रचना में शब्द सामर्थ्य झलकती है ! शुभकामनायें आपको !

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  5. आपको सपरिवार होली पर अग्रिम वासन्ती शुभकामनायें..
    गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...बधाई.

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