सोमवार, 31 जनवरी 2011

अब तुम्ही बतलाओ

 आखिर में तय कर लिया दिल ने कि
चाहत के हुलास का
मन के गुलाब का
नज़रों के शबाब का
कोई विवेचनात्मक तर्क नहीं होता है,
प्यार का संकल्प होता है
पर
दीवानगी का कोई विकल्प नहीं
इसलिए
अब तुम्ही बतलाओ
तुम्हे पाने की ज़िद में
यह दीवानगी
किस तर्क को मानेगी
तुम्हारे सिवा
क्या समझेगी क्या जानेगी
इसलिए या तो तुम
मेरा हुलास, गुलाब और शबाब
बन जाओ
या फिर
मेरी दीवानगी को यूँ ही रहने दो,
याचनाओं के बल पर
प्रीति की रीत नहीं बना करती,
प्यार को प्रश्न की तरह सुलझाना  
मात्र एक बौद्धिक छलावा है.



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्यार को प्रश्न की तरह सुलझाना
    मात्र एक बौद्धिक छलावा है.


    ओह...अतिसुन्दर...आभार

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  2. याचनाओं के बल पर प्रीत की रीत नहीं बना करती ...
    क्या बात है !

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