रविवार, 16 जनवरी 2011

रचयिता

सांखल बजती रही भ्रम हवा का हुआ  
कल्पनाओं के सृजन की है यही कहानी
डूब अपने में किल्लोल की कमनीयता लिए
रसमयी फुहार चलती और कहीं जिंदगानी

हर नए झोंके में नवगीत लिए थाप है
एक नए बंदिश ने छेड़ी अपनी मनमानी
एक नए आकाश में कंदील नया जला
भावनाएं खिल उठीं कल्पनाएँ ले नादानी

निखर उठे नाज़-ओ-अदा ताप बिसर
खुसुर-फुसुर बनने लगी नयी कहानी
रचयिता की चल पड़ी अंगुलियाँ लिखने नया
कल्पनाएं निखर गयीं और राह अनजानी

प्राप्ति की संभावनाएं साज़ दिल की बनी 
व्याप्ति की आकांक्षाएं लगे दिलबर जानी
बांटने का सुख कोई इन दीवानों से सीखे
यथार्थ की खोह में ढूँढते आँखों का पानी.



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता 
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

6 टिप्‍पणियां:

  1. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html

    जवाब देंहटाएं
  2. एक उत्कृष्ट रचना।
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर अभिव्यति, सुंदर शब्द संयोजन.

    बधाई.

    रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. शब्दों और भावनाओं को बहुत खूबसूरती से पिरोया है

    जवाब देंहटाएं