मंगलवार, 4 जनवरी 2011

इस तरह शाम ने

इस तरह शाम ने जुल्फों में छुपाया तुमको
चांद भी रात पूरी भागता रहा ना पाया
बादलों ने भी की तरफदारी शाम की खूब
चांदनी छुपती रही मिल ना पाया साया

किसी झुरमुट से झींगुर ने संदेशा दिया
तट सरोवर कल शाम था इठलाया
जुगनुओं ने घेर रखा था सिपाही की तरह
मखमली एहसास लिए था कोई आया

हवा ने बिखेरा तुम्हारी जुल्फों की खुशबू

पत्तों ने उड़ कहा कल कोई था गुनगुनाया
बीते कल की गूंज में आज नज़र ना आया
कोशिशें नाकाम रही शाम ने खूब छकाया

तुम्हारे वादों पर ऐतबार जो दिल ने किया
फिर किसी वादे पर यकीन ही ना आया
कदम फिर चले पड़े उम्मीद से लिपटे
फिर भी ना मिल सकी हसीन सी माया


धीरेन्द्र सिंह



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
 शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

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