इस तरह शाम ने जुल्फों में छुपाया तुमको चांद भी रात पूरी भागता रहा ना पाया बादलों ने भी की तरफदारी शाम की खूब चांदनी छुपती रही मिल ना पाया साया किसी झुरमुट से झींगुर ने संदेशा दिया तट सरोवर कल शाम था इठलाया जुगनुओं ने घेर रखा था सिपाही की तरह मखमली एहसास लिए था कोई आया हवा ने बिखेरा तुम्हारी जुल्फों की खुशबू पत्तों ने उड़ कहा कल कोई था गुनगुनाया बीते कल की गूंज में आज नज़र ना आया कोशिशें नाकाम रही शाम ने खूब छकाया तुम्हारे वादों पर ऐतबार जो दिल ने किया फिर किसी वादे पर यकीन ही ना आया कदम फिर चले पड़े उम्मीद से लिपटे फिर भी ना मिल सकी हसीन सी माया धीरेन्द्र सिंह |
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
सुन्दर रचना। आखिरी पाँक्तियाँ बहुत अच्छी लगी। बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छे भाव. सुन्दर शब्द.
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