सोमवार, 15 नवंबर 2010

दिल

कहीं उलझ कर अब खो गया है दिल
खामोशी इतनी लगे कि सो गया है दिल
ख़ुद में डूबकर ना जाने क्या बुदबुदाए
नमी ऐसी लगे कि रो गया है दिल

मेरे ही ज़िस्म में बेगाना लग रहा
करूं बहाने तब कहीं मिलता है दिल
अधूरे ख्वाब,चाहतें अधूरी, दिल भी
अरमानी डोर से आह सिलता है दिल

अलहदा रहने लगा आसमान सा अब
सपना सजना के अंगना, अबोलता दिल
रखना किसी की चाह में नूर-ए-ज़िंदगी
बेख़ुदी में हर लम्हे को तौलता है दिल

यह कैसी प्यास कि बुझना ना जाने
यह कैसी आस कि तकता रहे दिल
यह कौन सी मुराद कि फरियाद ना करे
यह कैसा दुलार कि ना थकता है दिल. 

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