जब से मिला हूँ आपसे, रूमानियत छा गई है
खामोशी भाने लगी है, इंसानियत आ गई है.
खयालों में, निगाहों में, चलीं रिमझिमी फुहारें
वही बातें, वही अदाऍ, रवानियत भा गई है.
धड़कनों में समाई है, खनकती गुफ्तगू अपनी
खयालों में उलझी सी, एक कहानी आ गई है.
बहुत मुश्किल है अब और, छुपाना दिल में
मेरे अंदाज़ में आपकी, जिंदगानी छा गई है.
आपका अलहदा नूर, करे मदहोश चूर-चूर
खुद से चला दूर, ऋतु दीवानी बुला गई है.
बहुत खूबसूरत रुमानियत से भरी गज़ल
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