शनिवार, 31 मई 2025

साहस

 मैं भी चला था दौर में देखा न गौर से

एक दिन भी चाह न छोड़ा मिली और से


अब भी उन्हीं जैसा दिखे तो धड़के दिल

संकोच गति को बांधे मन चीखे आ मिल

मैं अपनी धुन में वह अपने उसी तौर से

एक दिन भी चाह न छोड़ा मिली और से


यह बात नहीं कि वह समझीं न इशारा

एक बार उनकी राह देख मुझको पुकारा

थम गया, संकोच उठा, घबराया कौर से

एक दिन भी चाह न छोड़ा मिली और से


प्यार भी हिम्मत, साहस, शौर्य के जैसा

कदम ही बढ़ ना सके तो पुरुषार्थ कैसा

आज भी वही पल ठहरा हांफते शोर से

एक दिन भी चाह न छोड़ा मिली और से।


धीरेन्द्र सिंह

31.05.2025

17.44



शुक्रवार, 30 मई 2025

बहाना

 सीखा बहुत न सीख पाया वैसे निभाना

ना जब कहना हो तो बनाएं कैसे बहाना


आप अभिनेत्री हैं या जीवन की हैं नेत्री 

एक दुनिया आपकी जिसकी आप हैं क्षेत्री 

शब्द भी है धुन भी आपका रहे तराना

ना जब कहना हो तो बनाएं कैसे बहाना


है ज्ञात कुछ तो गड़बड़ आप कर रहीं

तलाशते रहे न आधार न मिले जमीं

यहां-वहां जहां-तहां भोलेपन में घुमाना

ना जब कहना हो तो बनाएं कैसे बहाना


कुछ तो विशेषता आपमें है ईश्वर प्रदत्त

बातों में आपसा भला है कौन सिद्धहस्त

हारता है पुरुष फिर भी बना रहता दीवाना

ना जब कहना हो तो बनाएं कैसे बहाना।


धीरेन्द्र सिंह

30.05.2025

13.45



बुधवार, 28 मई 2025

मौलिकता

 कविताओं में

शब्द, अभिव्यक्ति का

जितना हो प्रयोग

उतना ही सुंदर

बनते जाता है

साहित्य का सुयोग,

समय संग

व्यक्ति का अभिन्न नाता

दायित्व अंग

समय संग जो निभाता,

रचता वही नव इतिहास

परंपरा के जो अनुयायी

बने रहते समय खास,


लाइक और टिप्पणी ललक

हद से जब जाए छलक

असमान्यता तब जाए झलक

लेखन आ जाए हलक

विचारिए

लेखन आशीष मिला

लेखन को संवारिए,

यही दायित्व है

निज व्यक्तित्व है

नयापन लेखन में पुकारिए,


इस लेखन साधना के

हैं विभिन्न योगी

नित करते रचनाएं

बन अपना ही प्रतियोगी

बिना किसी चाह

बिना किसी छांह

रचते जाते हैं

जो लगा है सत्य

उसीको गाते हैं,


इसकी रचना, उसकी लाईक

उसकी रचना, इसकी लाईक

लेनदेन साहित्य नहीं

लेखन नहीं मंच और माइक,

लेखन साधना है कीजिए

नए शब्द, भाव दीजिए

पुष्प खिलेगा

उडें सुगंध

तितली, भौंरे लपकते

करें पुष्प पर अपना प्रबंध।



धीरेन्द्र सिंह

29.05.2025

10.53


ताल

 आप ऐसे चमकें जैसे अँजोरिया

संवरिया का ताल, कहे गोरिया


मन महकाय के सपन दे बैठी

रात बहकाय के अगन दे ऐंठी

अंखिया जागत, होती जाय भोरिया

संवरिया का ताल, कहे गोरिया


मगन लगे कब खबर नहीं

अगन कहे अब सबर नहीं

तपन सघन लगे चहुँ ओरिया

संवरिया का ताल, कहे गोरिया


इतनी चमक नहीं समझ पाएं

कौन लपक चमक जी हर्षाए

समझ सके ना कोई मजबूरियां

संवरिया का ताल, कहे गोरिया।


धीरेन्द्र सिंह

28.05.2025

17.53



सोमवार, 26 मई 2025

आप

 आज बहुत दिन बाद

नींद खुलते ही

प्रतीत हुआ कि

प्रणय की बदलियां

मन में उमड़-घुमड़

संवेदनाओं को जगा रही हैं,

जग तो जाता हूँ

याद आती हैं

जब आप ऐसे,

जैसे चटकी हो कली

फूल खिला हो जैसे,

जिसकी सुगंध

तन को अधलेटा कर

बंद कर पलकें

करती रहती हैं सुगंधित

आप से जुड़ी कल्पनाओं को,


बदलियां सेमल की रुई सी

कोमल स्पर्श कर

आपकी अंगुलियों सी

निर्मित कर रही हैं

पुलकित झंकार,

व्योम में भी 

बदलियां बूँदभरी

बरसने को तत्पर दिखीं,

मौसम बरसाती हो गया,

बंद पलकें

एक अलौकिक आनंद से

अभिभूत

कल्पनाओं की

घनी बदलियों में

आप संग करता रहा

उन्मुक्त विचरण,


जीवन के दायित्वों ने

कर दिया विवश

खुल गयी पलकें

और बरसाती मौसम में

आज फिर आप

मेरी कविता से लिपट गईं।


धीरेन्द्र सिंह

28.05.2025

06.30



शुक्रवार, 23 मई 2025

चलो

 शक्ति से शौर्य से लुभाते चलो

लोग चलें न चलें भुनाते चलो


प्यार, श्रृंगार, अभिसार से पार

कामनाएं मृदुल भाव की न धार

अपनी चाल हो अन्य में ना ढलो

लोग चले न चलें भुनाते चलो


नारी बिंदिया से उदित होता सूर्य

नारी प्यार ऊर्जा करती है उत्कर्ष

आज नारी हुंकारी हाँथ ना मलो

लोग चले न चलें भुनाते चलो


प्रणय अब लग रहा प्रसंगहीन

कब तक निश्छलता छल अधीन

जन, ज़र, ज़मीन प्रतिकूलता तलो

लोग चले न चलें भुनाते चलो।


धीरेन्द्र सिंह

24.05.2025

10.15


गुरुवार, 22 मई 2025

आप और बारिश

 बरसात आती है

जैसे आती हैं आप

घटाएं आती हैं

जैसे आपकी यादें,

वह तपिश क्षीण हो जाती

जैसे बादलों से ढंका सूर्य

और परिवेश पुलकित हो

बारिश की बूंदों की करें प्रतीक्षा

जैसे मेरे नयन ताकें

आपकी कदमों की आहट,

कभी सोचा है आपने ऐसा ?

ना ही बोलेंगी, सकुचाती,


घटाएं भी तो चुप

अपने में सिमटी

ठहरी रहती हैं स्थिर

धरा को देखती

और मैं सोचता हूँ

कब मेरी दृष्टि समान

देख ली बदलियां आपको

और चुरा लीं

आपकी अदा जैसे

मेरे कुछ प्रश्नों पर

रहती हैं ठहरी मौन

और चली जाती है प्रतीक्षा

अंततः थक कर,


अचानक तेज हवाएं

बिजली का कड़कना

और झूमकर 

बदलियों का बरस जाना

बस आपकी इसी मुद्रा हेतु

पुरुष एक साधक की तरह

रहता है नारी आश्रित

जहां झूमने के पल होते हैं।


धीरेन्द्र सिंह

23.05.2025

09.45


युद्ध

 लिख ही देता हूँ कलम ना थरथराती

नियमावली के अनेक प्रावधान है

मनुष्यता ही मनुष्यता का करे दमन

दर्द व्यंजित धरा का क्या निदान है


प्रेम की बोली या कि अपनापन कहें

प्यार की स्थूलता पर गुमान है

हृदय की समग्रता सूक्तियों में ढलें

जो सीखा है उसी का कद्रदान हैं


कौन अपना कौन पराया पहचानना

अपने ही तो पराजित मान करें

स्थानीय ऊर्जा का करते विलय

कीमतों पर बिक अभिमान करें


संघर्ष हर पग सब संघर्षशील

संघर्ष में युद्ध का कमान चले

घर में अपने बंग ढंग प्रबंध

कैसे कहें इसमें विद्वान ढले


काग चेष्टा बकुल ध्यानं समय

श्वान निद्रा का सम्मान करें

समय के अनुरूप सृष्टि भी चले

राष्ट्रभक्त हैं मिल राष्ट्रगान करें।


धीरेन्द्र सिंह

22.05.2025

16.12



अभ्यास

 चेष्टाएं प्रबलता की सब करें

अनुभवी अभ्यासी ही यूं चलें

अन्य अंधी दौड़ में उलझे कहें

साधक बन क्यों एकलक्षी गलें


जो चमकता दिखे, है अभ्यास

वर्ष कितने गुजरे इसी वलबले

शीघ्रता में कुछ मिला न कभी

गंभीरता जहां क्या करें मनचले


कौन क्या देख रहा स्थान कहां

देख पाना भौगोलिक भाल धरे

एक व्योम पर है कई दृष्टियाँ

व्योम सबको एकसा ना दिखे


प्रेम पर समाज पर खूब लिखे

हर रचना में कुछ नया दिखे

भाव-शब्द मनतार जिसका कसा

अभिव्यक्तियाँ झंकार नव ले खिलें।


धीरेन्द्र सिंह

22.05.2025

12.49



मंगलवार, 20 मई 2025

चाय या तुम

 झुकती लय टहनियां वाष्पित झकोरे

एक चाय सी हो लगती तुम भोरे-भोरे


एक घूंट चाय सा लगता है संदेशा

गर्माहट भरी मिठास अनुराग सुचेता

गले से तन भर झंकृत हो पोरे-पोरे

एक चाय सी हो लगती तुम भोरे-भोरे


अंगुली तप जाए अधर उष्णता दास

चाय रहती तपती करती चेतना उजास

रंगमयी कल्पनाएं संग चाय दौड़े-दौड़े

एक चाय सी हो लगती तुम भोरे-भोरे


हो जिद्दी बारिश, गर्मी हो या सर्दियां

हल्का हुआ विलंब छा देती हो जर्दियाँ

कोई न बीच हमारे चुस्कियां मोरे-मोरे

एक चाय सी हो लगती तुम भोरे-भोरे।


धीरेन्द्र सिंह

21.05.2025

11.01



नारी

 आप मन प्रवाह की तीर हैं

कल्पना प्रत्यंचा अधीर है

स्वप्न गतिशील सुप्त गुंजित

संकल्पना सज्जित प्राचीर है


सौम्यता से सुगमता संवर्धित

उद्गम उल्लिखित पीर है

सौंदर्य को करती परिभाषित

कौन कहता मात्र शरीर हैं


स्वेद को श्वेत कर सहेजती

भेद में प्रभेद लकीर है

सत्य लुप्त कर दिया गया

तथ्य तीक्ष्णता की नीर हैं


विश्व वृत्त की कई क्यारियां

नारियां हीं नित्य वीर हैं

पुरुष एक मचान सदृश रहे

श्रेष्ठता युग्म की तकदीर हैं।


धीरेन्द्र सिंह

20.05.2025

19.46




प्रतीक्षा

 नयन बदरिया पंख पसारे

पाहुन अगवानी को धाए

अकुलाहट से भरी गगरिया

मन छलकत नेह भिगाए


साँसों की गति अव्यवस्थित

स्थिति खुद को अंझुराए

गाय सरीखा उदर भाव है

चाह राह तकते पगुराए


गहन सदीक्षा मगन प्रतीक्षा

अगन द्वार खूब सजाए

युग्म हवन कोमल अगन

हृदय थाप की नई ऋचाएं


संगत भाव मंगत छांव

पंगत में लगते कुम्हलाए

झुंड चिरैया उड़ती हंसती

पाहुन आए लखि बौराए।


धीरेन्द्र सिंह

20.05.2025

16.00



सोमवार, 19 मई 2025

क्या करता

 मन मसोसकर जीवन  है विवशता

कहावत सही, मरता न क्या करता


आप बाग-बाग सी महक-महक गईं

अभिलाषाएं प्यार की मचल लुढ़क गई

अप्रतिम हो व्यक्तित्व मन है कहता

कहावत सही, मरता न क्या करता


आप आब-आब हैं शवाब ताब हैं

सगुन लक्षणी खिला माहताब हैं

मनभावनी हैं भाव झरते ही रहता

कहावत सही, मरता न क्या करता


आप लज्जा-लज्जा हैं प्यार का छज्जा

बच्चा सा दुबका प्यार अरमानी मस्सा

कदम बढ़ चला अब रुके नहीं रुकता

कहावत सही, मरता न क्या करता


आप गर्व-गर्व हैं संगत का पर्व है 

मर्त्य हर प्रयास का भी उत्सर्ग हैं

जीवन प्यासा ले चाहत है सिहरता

कहावत सही, मरता न क्या करता।


धीरेन्द्र सिंह

19.05.2025

18.23



ऑनलाइन

 हर चीज है ऑनलाइन

हर उम्मीद ऑनलाइन

हरएक को चाहनेवाले

फ्रेंडलिस्ट भी ऑनलाइन


मिलना आसान ऑनलाइन

फ़्लर्ट संसार भी ऑनलाइन

मिलते कई विकल्प यहां

चमत्कार धार ऑनलाइन


इंसान झंकार ऑनलाइन

तबियत मसाज ऑनलाइन

कोई न कोई मिल जाता

अनमोल हैं ऑनलाइन


इंसान से इंसान हो दूर

अनुभूति मिले ऑनलाइन

व्यक्तिगत मिले बगैर

व्यक्तित्व ढलता ऑनलाइन।


धीरेन्द्र सिंह

19.05.2025

16.50

रविवार, 18 मई 2025

मुस्कराहट

 मुस्कराहट मन में या होंठ पर

हर हालत में दे जाती है कौंध

जो समझ ले बूझ ले उसे भी

दर सोच-सोच कल्पना के पौध


शब्द जिसको कहने में हिचकिचाता

मुस्कराहट कह दे उसको छौंक

समझनेवाला अर्थ ढूंढता हो तत्पर

अर्थ-अर्थ समर्थ होकर जाता चौंक


हर हृदय एक आस भी है प्यास

समाज से भयभीत हो कतरब्यौन्त

अभिलाषाएं जगती पनपती स्वभावतः

मुस्कराना न आए हो जाती मौत


मुस्कराहट की है श्रेणियां विशेषताएं

भावनाएं जो प्रबल वही भादो चैत

व्यक्ति संवेदनशीलता हो बंधनमुक्त

एकाकार भाव हों अस्तित्व हो द्वैत।


धीरेन्द्र सिंह

18.05.2025

14.08



शनिवार, 17 मई 2025

नाद है

 करतल ध्वनियों का निनाद है

किसकी जीत का यह संवाद है

किन उपलब्धियों के विजेता है

संघर्ष निरंतर है और विवाद है


इतिहास की हैं कुछ गलतियां

विश्वास भी कहता नाबाद है

कौन किस गलियारे आ पड़ा

जो जहाँ लगे वह आबाद है


चाल चलती बढ़ती हैं युक्तियां

सूक्तियों का चलन निर्विवाद है

ज्ञान कटोरा ने क्या-क्या बटोरा

व्यक्ति-व्यक्ति में वही नाद है


समय को इतिहास है पुकारता

परिवर्तन में भविष्य जज्बात है

शौर्य साध्य है संयोजनों का

समय कहता सहज यह बात है।


धीरेन्द्र सिंह

17.05.2025

17.27



गुरुवार, 15 मई 2025

भय

 कई दिनों से

उनके और मेरे बीच

बंद थी चैटिंग,

उन्होंने बंद नहीं की

और न मैंने

चैटिंग बंद की

मेरे भय ने,


चैटिंग के प्रवाह में

एक बार

भावना में अनियंत्रित

बह गया, कह गया

जो प्रायः अधिकांश

पुरुषों संग होता है,

उनका जवाब खिला न लगा,

मैंने जो कहा था

ज्ञात हो ही जाता है

हो गयी त्रुटि

भले न वह तानें भृकुटि

सोच यह सहम गया,

चैटिंग करने नहीं गया,


प्रतिदिन

मेरी रचना पर

उनका आना

लाइक कर चले जाना

मुझे देता था सोच

नाराज होंगी पर

नहीं की हैं खारिज मुझे,

वह बोलती हैं अक्सर

मेरी कविताओं की

मुग्धा वह हैं,


आज सुबह

उनका चैट आया

“कैसे हैं आप”

स्वर्ग उतर मेरे पास आया,

हृदय ने रूधिर

ब्रह्मोस सा दौड़ाया,

आंखे जुगनू हो गईं

और अंगुलियां

तेज गति से

दौड़ने लगीं की बोर्ड पर,

उंडेल दिया मन को प्रवाह में,

 पढ़ा

“मेरी बेटी ने सीबीएससी बोर्ड में

90 प्रतिशत अर्जित किया”,

इतना अपनापन !


मेरे नयन भींग गए

क्या टाइप किया

क्या पढ़ा

डबडबायी आंखें क्या जाने

बस इतना ही जान पाया

नारी अद्वितीय है,

अवर्णनीय, अकल्पनीय,

धन्य है नारी🙏


धीरेन्द्र सिंह

15.05.2025

15.00

बुधवार, 14 मई 2025

साहित्य धुरंधर

 लेखन के धुरंधर अपनी रचनाओं के अंदर

पुस्तक प्रकाशन, मंच इनका है समंदर

समीक्षक धुरंधर को देते लेखन लोकप्रियता

वरना कई श्रेष्ठ लेखन पाते हैं प्रकारांतर


जब नहीं था दूरदर्शन, फ़िल्म, सोशल मीडिया

पनपे इसी दौर में हिंदी लेखन के धुरंधर

अब प्रतिदिन श्रेष्ठ रचनाएं रही हैं तैर उन्मुक्त

अर्थहीन, भावहीन शब्द साहित्य धुरंधर


देवनागरी लिपि का कहां हो रहा प्रयोग है

स्तरीय हिंदी अनुवाद कहां है अभ्यंतर

मूल हिंदी में लिखा जा रहा कहां कुछ

कहानी, कविता अब नहीं भाषा मंतर


प्रत्येक क्षेत्र की होती है अपनी शब्दावली

हिंदी भाषा कितने शब्द निर्मित करे निरंतर

चुपचाप स्वीकारते शब्द अंग्रेजी का ही चलें

शब्द हिंदी निर्माण उचित हो तो प्रगति सुंदर


हिंदी के सिपाही रहते सजग, सचेत तत्पर

अनगढ़ कहीं दिखे सुधार के प्रयास अंदर

अनुशासन से होता भाषा विकास संवर्धन

जनता ही प्रयोक्ता है जनता ही धुरंधर।


धीरेन्द्र सिंह

14.05.2025

15.35



मंगलवार, 13 मई 2025

रुचिकर

 लकड़ियों की छांव में, वनस्पति अनुभूति

भावमाओं के गांव में, शाब्दिक अर्थरीत

रचनागत गहनता में ढूंढते पगडंडियां ही

कदम गतिमान नहीं कहें प्रगति प्रतीति


हिंदी जगत में प्रचुर प्रखर हैं बैसाखियाँ

है प्रयास बैसाखी हटे साहित्य की जीत

लेखन से जुड़ें नहीं जपें लेखन कुरीतियां

ऐसे रुचिकारों से दरक रही सृजन भीत


चिंतन-मनन नहीं बस दबंग सर्वंग कहें

चर्चा साहित्यिक हो तो चाहें जाए बीत

तर्क का आधार नहीं साहित्य दरकार नहीं

फिर भी घुस बीच में दर्शाएं बौद्धिक लीख


ऐसे लोग चाहते मिले उन्हें साहित्यिक पहचान

अपनी लंगड़ी बातों को कहें है साहित्य नीति

ऐसे लोगों को वैचारिक उचित उत्थान मिले

आज हिंदी जगत में ढुलमुल मिलें ऐसे मीत।


धीरेन्द्र सिंह

13.05.2025

17.58



सोमवार, 12 मई 2025

जुड़ाव कहां

 तिथियों में कथ्य बंट गए

सत्य भी पथ्य में अंट गए

पहले सा ना रहा दिखावा भी

रिश्ते कैसे-कैसे सिमट गए


अब मोबाइल की है धड़कन

जब बजे उछल पड़े तड़पन

दूर-दूर से ही शब्द लिपट गए

रिसते कैसे-कैसे सिसक गए


छन्न से क्षद्म यह बनाती है

जिंदगी जैसे की आंधी-पानी है

बहते-बहते बेखबर अटक गए

किससे कहें कौन कहां भटक गए


पारिवारिक उत्सव में जुड़ाव कहां

फर्ज अदायगी है दिल उड़ाव कहां

जिंदगी चाही जिंदगी में लचक गए

हो रही भागमभाग ले लपक गए।


धीरेन्द्र सिंह

12.05.2025

09.57



रविवार, 11 मई 2025

शब्द

 शब्द आतिथ्य में भावनाओं का गबन

आप जैसा ही शब्द करता है मनन


क्या कहा आपने लगा कि आप कह गईं

आपको सुनने की कोशिश कहीं बहल गई

कभी समझा ना कभी समझा लगे कथन

आप जैसा ही शब्द करता है मनन


भावनाएं मांगती हैं शब्द से चुना खास ही

शब्द कहता जियो सबकुछ नहीं प्यास ही

शब्द चुपचाप रहें भावनाओं का हो जतन

आप जैसा ही शब्द करता है मनन


हर नए व्यक्तित्व की प्रोफाइल से जांच

जैसे कोरे शब्द में ढूंढना भाव की आंच

तपिश अनुभूति की ढूंढ रही कहां अगन

आप जैसा ही शब्द करता है मनन।


धीरेन्द्र सिंह

11.05.2025

21.13



शनिवार, 10 मई 2025

आप

 आप छूती हैं गुदगुदाती हैं

एक हवा सी गुजर जाती है

लाख कोशिशें समझ न पाईं

आप क्या-क्या बुदबुदाती हैं


एक झोंका सुगंधित छू भागा

ऐसी शरारत कुहुक जाती है

मन जाता बहक अक्सर ही

कविता मेरी यूं सुगबुगाती है


पंखुड़ियां सजी मेरी हथेलियां

तलवे आपके खिल सहलाती हैं

यूं लगे गुजर रही हैं बदलियां

गजब हैं आप चुप खिलखिलाती हैं


मेरी अनुभूतियां हो रहीं गर्वित

आपकीं रीतियां बलखाती हैं

एक लौ राह में जलाइए तो

आलोकित हो आमादा बाती है।


धीरेन्द्र सिंह

11.05.20२5

09.09



शुक्रवार, 9 मई 2025

संपर्क

 जो भी आता मुझसे मिलता

औपचारिकता संग छुपे दिल का

इसमें उनकी क्या कोई गलती

सांसारिकता अब चुके दिन सा


जीवन में है मिला जो धोखा

लोग हैं सोचते संपर्क साहिल सा

लहरों सा छूकर तट लौट जाना

संबंध अब तो है बस हासिल सा


तर्क और विवेक के अनुभव कहें

असत्य सब सत्य मात्र काबिल का

हर संपर्क तौलता निज लाभ हानि

जग यही सोचता कर्म कातिल सा।


धीरेन्द्र सिंह

09.05.2025

19.05



गुरुवार, 8 मई 2025

माटी

 युद्ध है शस्त्र धरो योद्धा

देश हमारा माटी है श्रद्धा


बम गूंज भरे टेलीविजन

ब्लैक आउट उनका जीवन

जज़्बा उनका ढूंढ रहा कंधा

देश हमारा माटी है श्रद्धा


आतंकी पालता पोसता देश

अब बता क्या बचा है शेष

शहर-शहर टूटा झुका मत्था

देश हमारा माटी है श्रद्धा


भारतीय सेना जीत लिए पैना

लक्ष्य लहका दें सत्य यह है ना

टूटा वह देश हो तिहाई अद्धा

देश हमारा माटी है श्रद्धा।


धीरेन्द्र सिंह

09.05.2025

07.46



बुधवार, 7 मई 2025

योद्धा

 संघर्ष ही है जीवन कहे मानव इतिहास

धरा कहे व्योम से कर इसपर विश्वास


हर सांस जीवन युद्ध है और बुद्ध हैं

संघर्ष से जो गुजरे वही जीव शुद्ध हैं

बौद्धिकता ही नहीं सामाजिकता सायास

व्यक्ति हौसले को कहे लक्ष्य कर तलाश


नित अंग संचालन स्वास्थ्य का आधार

नित्य अप्रासंगिक त्यजन सुखद संसार

बाधाएं प्रगति की करें दुखद जो सायास

हर वेदना कहे निर्मूलन शीघ्र हो काश


हर व्यक्ति योद्धा की तरह सौष्ठव रहे

जब जीत जाता कहता चलो उत्सव करें

हर व्यक्ति का अस्त्र-शस्त्र करे उल्लास

योद्धा जो सुप्त व्यक्ति में हो कहां उजास।


धीरेन्द्र सिंह

07.05.2025

06.01



मंगलवार, 6 मई 2025

पानी न दी

 (नई दिल्ली, एनसीआर में घटित एक सत्य घटना पर आधारित रचना जहां कुछ पुरुषों ने मिलकर एक उभरती सशक्त रचनाकार को ऐसा भरमाया की उसने लेखन बंद कर दिया और सर्जनात्मक रूप से बिखर गई जिसका खेद है।)


दरवाजे से लौटा दी मांगा पानी न दी

ऐसा भी करती हैं साहित्य सेवी महिला

दोष इतना सा था कि बहकने से रोका

अब मौन है अज्ञात है जो थी पहिला


एक उड़ीसा की लेखिका पूजती रहती

नासमझ वह क्या जानें उत्तर का किला

पंजीकृत संस्था है निष्क्रिय, प्रकाशक शांत

गलियारों में साहित्य का रहा मौन खिलखिला


कहता था मर जाओगी भ्रमित जाल में

झूठी प्रशंसा, उपहारों ने दिया मन हिला

अब सर्वेश्वर की कविता यूट्यूब पर पढ़ें

खुद की काव्य पुस्तक कर रही है गिला


हर उभरती साहित्यिक महिला को मशवरा

लेखन रहे सतत अन्य गौण सिलसिला

एक प्रतिभाशाली लेखिका, मौन हो गयी

दर्द सह सका न अब तो, दिया चिल्ला।


धीरेन्द्र सिंह

02.05.20२5

17.17



सोमवार, 5 मई 2025

भाव जगाने

 कुचले गए हैं भाव निभाने को तराने

कुचलन करे उछलन वही भाव जगाने


स्तब्ध जब किया जप्त हुई भावनाएं

सुलगती राख हो गयी कई कामनाएं

ढांढस बंधाए लेकर तरीके कई मनाने

कुचलन करे उछलन वही भाव जगाने


हर व्यक्ति पास हैं कुचले हुए कुछ भाव

जिंदगी की जरूरत का था तब निभाव

अब समय गया बीत वह सबक भुनाते

कुचलन करे उछलन वही भाव निभाने


थक गया है जीवन दाग छुपते-छुपाते

खुद से कितना भागना लुकते-लुकाते

वही दौर फिर जगेगा सूनी चाह जगाने

कुचलन करे उछलन वही भाव निभाने।


धीरेन्द्र सिंह

05.05.2025

13.54



रविवार, 4 मई 2025

गमन

 साँसों पर होती उन कदमों की थिरकन

फूलों का खिलना उन नगमों की सिहरन

महकती फिजां में यह सोच हो खड़ी कहे

पुष्प है या कि है उनकी यह नई महकन


उन्हें देखकर लगा देखा ही नहीं है उन्हें

एक झोंका गुलाबी उड़ा पहनकर पैरहन

एकटक यकायक सबकुछ घटा समझ परे

सांसें महक उठी पकड़ लय की गिरहन


जब थीं जुड़ी ऑनलाइन अंदाज़ गज़ब था

एहसास भाव ताश खेलता करता रहा नमन

मेरी दीवानगी को समझ बैठी मेरी आवारगी

बाद उसके जो हुआ प्रभाव उसका है गहन


अब सांस रह गयी हैं वो कहता जमाना

बेगाना मान बैठी हैं हँस दिल करे सहन

प्यार अधिकार कब बन जाता पता नहीं

तुम भी बढ़ रही चल रहा मैं, कैसा गमन।


धीरेन्द्र सिंह

04.05.2025

20.36



शुक्रवार, 2 मई 2025

सदा

 नादानियाँ नहीं तो उम्र का क्या मजा

जो वर्ष गिनना जानें दें उम्र को सजा


कब चढ़ती उम्र कब ढलती है जवानी

ढूंढा इसे बहुत कह न पाई जिंदगानी

मन जवां तन बूढ़ा आजकल दें धता

प्यार की है परिधि जमाना रहा जता


दिल के जो जानकार पढ़ते हैं तरंगे

मिल अँखियों से अँखियाँ रचे उमंगें

दिल-दिल से पूछता चैट का समय बता

छुप-छुप किशोरावस्था की पाएं अदा


नयनों में भक्ति है बसते हैं आराध्य

बातों में भजन है हर वेदना का साध्य

तन भी तो मंदिर है मन हवनकुंड सदा

भावों को क्यों दबाना दे दीजिए सदा।


धीरेन्द्र सिंह

01.05.2025

13.33



गुरुवार, 1 मई 2025

मैं

 यदि मैं प्रतीत हूँ तो प्यार का प्रतीक हूँ

यदि मैं व्यतीत हूँ तो यार का अतीत हूँ

यदि मैं अनदेखा तो खुद से करूँ धोखा

यदि भीड़ का गुमशुदा तो शोर संगीत हूँ


एक संबंध का मन से मन का गीत हूँ

सर्जन से अर्जन जो उसीका मैं प्रीत हूँ

मन छुआ रचना मेरी एक डोर बंध गयी वहीं

मंद सुलगन राख दबी वही लिए रीत हूँ


जो भी मिले जो जुड़े लिए उनकी शीत हूँ

अभिव्यक्तियाँ उत्तुंग लिए भाव का भीत हूँ

इंद्रधनुष की ऋचाओं की शोध मिलकर करें

भावरंग भर चला हूँ साधना का क्रीत हूँ।


धीरेन्द्र सिंह

01.05.2025

12.32