सोच रहा हूँ
अपनी रचनाओं पर
प्राप्त प्रतिक्रियाओं का
वृहद कोलाज बनाऊं
और मध्य में
बसा खुदका चित्र, फिर
जीवन का उल्लास मनाऊं,
कैसे पढ़ लेती हैं आंखें
शब्द पार्श्व के निरख सांचे
कैसे उन नयनों के प्रति
भावपूर्ण एहसास जताऊं,
लिखना तो आदत सब जैसी
भाग्य, मिली दृष्टि चितेरी
साहित्य का फाग रचाए,
निसदिन खुद को भींगता पाऊं,
कितने हैं साहित्य मर्मज्ञ
मैं तो मात्र समिधा सा,
गुंजित है वेदिका सुगंध
अनुभूति इन प्रथमा का,
अंतर्चेतना जगाते जाऊं,
तुम ना लिखती या आप कहूँ
बहुत करीब तो तुम आ जाए 😊
प्रतिक्रिया मेरा ध्यान का आसन
लेखन चेतना ऊर्जा पाऊं,
हे मेरे तुम
तुम मुझमें और
मैं तुझमें गुम,
राह अंजोरिया
चाह नए पाता गाऊँ,
सहज नहीं प्रतिक्रिया लेखन
गूढता तक हो पैठन
भाव शब्द का ऊपर ऐंठन
ऐसा योग साहित्य समाहित
धन्य आप
नित प्रतिक्रिया पाऊं🙏
धीरेन्द्र सिंह
18.03.2025
18.10
अति सुंदर सृजन
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