बुधवार, 29 जनवरी 2025

मैंग्रोव

 पथरीली राह

और राह के दोनों ओर

मीलों दूर तक

फैला मैंग्रोव,

अपनी जड़ों की

बनाए पकड़

सागर की लहरें

समझें धाकड़,

रोज गुजरते हैं कदम

राह के पत्थरों से

करते बातें;


राह के दोनों ओर

फैले मैंग्रोव से

आती चिड़ियों की

विभिन्न चहचहाअट

खींच लेती हैं दोनों बाहें

अपनी ओर

कर आकर्षित

और मैंग्रोव के दोनों कंधे पर

रख अपना दोनों हाँथ

चलते जाता हूँ

पथरीली राहों पर,


पहुंच जाता हूँ

सागर किनारे और

हवाएं सिमट आती हैं

मेरे बाजुओं में

सामने अटल सेतु

बौद्धिक योग्यता का

प्रमाण दर्शाता है

और सागर की लहरें

कदम चूमने को

हो जाती हैं आतुर

शायद हरना चाहती हो

पथरीली राहों की चुभन,


ऐसे ही मिलती है जिंदगी

प्रतिदिन सूर्योदय संग

जीवन की पथरीली राहों में

होते हैं मैंग्रोव

जिनसे जुड़कर

पहुंचा जा सकता है

जीवन सागर।


धीरेन्द्र सिंह

29.01.2025

18.08



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