शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

घूर

 घूरे पर बैठा व्यक्ति

सोचता

कितनी ऊंचाई है

क्या किसी ने

जिंदगी यह पाई है,


घूरा यहां गौण है

व्यक्ति ऊपर बैठा

सिरमौर है,


प्रमुखतया 

गोबर से निर्मित घूरा

चला जाएगा

बनकर जैविक खाद

अनाज का करने उत्पाद,

घूरे पर बैठा व्यक्ति

रहेगा सोचता

हर्ष के अतिरेक में

फिर ढूंढेगा कोई घूरा

देख अवसर बैठ जाएगा

और व्यक्ति सोचेगा

 अबकी शायद घूरा

उस व्यक्ति में ही

फसल उगाएगा,


चाहत

विवेकहीन

चटोरी होती है,

जब भी करती है संचय

जिंदगी

घूरा होती है।


धीरेन्द्र सिंह

31.0१.2025

09.28



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