घूरे पर बैठा व्यक्ति
सोचता
कितनी ऊंचाई है
क्या किसी ने
जिंदगी यह पाई है,
घूरा यहां गौण है
व्यक्ति ऊपर बैठा
सिरमौर है,
प्रमुखतया
गोबर से निर्मित घूरा
चला जाएगा
बनकर जैविक खाद
अनाज का करने उत्पाद,
घूरे पर बैठा व्यक्ति
रहेगा सोचता
हर्ष के अतिरेक में
फिर ढूंढेगा कोई घूरा
देख अवसर बैठ जाएगा
और व्यक्ति सोचेगा
अबकी शायद घूरा
उस व्यक्ति में ही
फसल उगाएगा,
चाहत
विवेकहीन
चटोरी होती है,
जब भी करती है संचय
जिंदगी
घूरा होती है।
धीरेन्द्र सिंह
31.0१.2025
09.28
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